```````ग़ज़ल``````````
कभी दर्द - ए -दिल कि दवा चाहता हूँ
कभी रोग इस से सिवा चाहता हूँ
अरे बेवफा सुन मैं क्या चाहता हूँ
खता मैंने कि हैं सज़ा चाहता हूँ
बहुत पहले जो ज़ख्म तूने दिया था
वही ज़ख्म फिर से हरा चाहता हूँ
मुयस्सर ना आई थी ताबीर जिसकी
वही ख़्वाब फिर देखना चाहता हूँ
अँधेरे ना आयें मेरी ज़िन्दगी में
जो जलता रहे वो दिया चाहता हूँ
ज़माने के ज़ुल्म -ओ -सितम सह गया मैं
तेरे ज़ुल्म कि इंतिहा चाहता हूँ
जिसे देखकर ज़ख्म दिल के हरे हों
उसे इक नज़र देखना चाहता हूँ
''ज़हीन'' आज फिर क्यूँ मैं उसकी कहानी
उसी कि ज़बानी सुना चाहता हूँ
Friday, July 23, 2010
ghazal
ताज़ा ग़ज़ल आपके लिए
फूल खिलने कि मौसम ख़बर दे गया
रूह को ताज़गी का सफ़र दे गया
डर गया है वो क्या मेरी परवाज़ से
हौसले छीन कर बालो - पर दे गया
जब दिखाए उसे उसके चेहरे के दाग
आईना वो मुझे तोड़कर दे गया
उसने अपनी अना पे न आंच आने दी
बात ही बात में अपना सर दे गया
मुश्किलें जिंदगानी कि आसाँ हुईं
वक़्त जीने का ऐसा हुनर दे गया
किसने बख्शी है फूलों को खुशबू ''ज़हीन''?
कौन है जो शजर को समर दे गया ?
फूल खिलने कि मौसम ख़बर दे गया
रूह को ताज़गी का सफ़र दे गया
डर गया है वो क्या मेरी परवाज़ से
हौसले छीन कर बालो - पर दे गया
जब दिखाए उसे उसके चेहरे के दाग
आईना वो मुझे तोड़कर दे गया
उसने अपनी अना पे न आंच आने दी
बात ही बात में अपना सर दे गया
मुश्किलें जिंदगानी कि आसाँ हुईं
वक़्त जीने का ऐसा हुनर दे गया
किसने बख्शी है फूलों को खुशबू ''ज़हीन''?
कौन है जो शजर को समर दे गया ?
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