Friday, April 9, 2010

''ग़ज़ल'' वो कुछ ऐसी अदा से मिलता है

वो कुछ ऐसी अदा से मिलता है


दर्द जैसे दवा से मिलता है

बेमुरव्वत सही प क्या कीजे

दिल उसी बेवफ़ा से मिलता है

फैल जाती है आग जंगल में

जब भी शोला हवा से मिलता है

है वो आलूदगी फ़ज़ाओं में

ज़हर हमको हवा से मिलता है

उसकी अठखेलियों का क्या कहना

ख़्वाब में भी अदा से मिलता है

हर कली को मिज़ाज शर्मीला

तेरी शर्मो - हया से मिलता है

ज़िन्दगी में सुकून मुझको ''ज़हीन''

जाने किसकी दुआ से मिलता है

''ज़हीन'' बीकानेरी