धूप में जब भी बाग़ जलता है
साथ दिल के दिमाग़ जलता है
एक ज़ालिम के ज़ुल्म से अब तक
है वतन पर जो दाग़ जलता है
क़ाफ़िले मंजिलों को पा न सके
मुद्द्तों से सुराग़ जलता है
मेरे दामन पे तेरी उल्फ़त का
जो लगा है वो दाग़ जलता है
दिल में नाकाम हसरतों का ''ज़हीन''
धीमे - धीमे चराग़ जलता है
''ज़हीन'' बीकानेरी
Friday, April 16, 2010
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