Thursday, April 8, 2010

''ग़ज़ल'' तेरे मिज़ाज में आवारगी बहुत कम है

उमीद मंजिले-मक़सूद कि बहुत कम है


तेरे मिज़ाज में आवारगी बहुत कम है

नए ज़माने के इंसान क्या हुआ तुझको

तेरे सुलूक में क्यूँ सादगी बहुत कम है

वो जिनसे ज़ीस्त कि हर एक राह रोशन थी

उन्ही चरागों में अब रोशनी बहुत कम है

मैं अपनी उम्र कि तुझको दुआएं दूँ कैसे

मुझे ख़बर है मेरी ज़िन्दगी बहुत कम है

जो सायादार कभी मोसमे-बहार में था

उसी दरख़्त का साया अभी बहुत कम है

तमाम रिश्तों कि बुनियाद है फ़क़त एहसास

मगर दिलों में तो एहसास ही बहुत कम है

बदलते दौर कि ज़द में है गुलसितां का निज़ाम

''ज़हीन'' फूलों में अब ताज़गी बहुत कम है

''ज़हीन'' बीकानेरी

''दुआ'

फूल; खुशबू ;बहार दे मौला


अब फ़ज़ा ख़ुशगवार दे मौला

अब ज़मीं को संवार दे मौला

ज़र्रा - ज़र्रा निखार दे मौला

जो हैं बे-रोज़गार उनको भी

रिज्क़ दे कारोबार दे मौला

ग़मज़दा हैं जो लोग उनपर भी

थोड़ी खुशियाँ उतार दे मौला

तेरी हर इक अता पे राज़ी हूँ

फूल दे या कि ख़ार दे मौला

राहे-हक़ से भटक न जाऊँ कहीं

नफ़्स पे इख्तियार दे मौला

सर उठा कर जियें ज़माने में

ज़िन्दगी बा-वक़ार दे मौला

ज़ुल्म के जिससे हों ख़ता औसान

ऐसा सब्रो-क़रार दे मौला

जोश पर है जो ज़ुल्म का दरिया

उसका पानी उतार दे मौला

इल्तिजा है ''ज़हीन'' कि तुझसे

शाइरी पे निखार दे मौला

''ज़हीन'' बीकानेरी

''हम्द'' अल्लाह कि तारीफ़

हुई है आज मुयस्सर तेरे हवाले से

वो ज़िन्दगी जो है खुशतर तेरे हवाले से

ये सच है खालिक़े - अकबर तेरे हवाले से

संवर गए हैं मुक़द्दर तेरे हवाले से

मुरादें जो भी हैं मेरी तेरे करम के तुफ़ैल

कुबूल होंगी सरासर तेरे हवाले से

जहाँ को आज भी तारीकियाँ हैं घेरे हुए

तनेगी नूर कि चादर तेरे हवाले से

तेरे हवाले से गुलशन में फूल महके हैं

सदफ़ में पैदा हैं गोहर तेरे हवाले से

तेरे हबीब कि अज़मत का ये सबूत भी है

जो कलमा पढ़ते हैं कंकर तेरे हवाले से
है तेरी ज़ात से उम्मीद और चमकेगा

''ज़हीन'' का भी मुक़द्दर तेरे हवाले से

'ज़हीन'' बीकानेरी