Friday, July 23, 2010

ghazal

ताज़ा ग़ज़ल आपके लिए


फूल खिलने कि मौसम ख़बर दे गया

रूह को ताज़गी का सफ़र दे गया



डर गया है वो क्या मेरी परवाज़ से

हौसले छीन कर बालो - पर दे गया



जब दिखाए उसे उसके चेहरे के दाग

आईना वो मुझे तोड़कर दे गया



उसने अपनी अना पे न आंच आने दी

बात ही बात में अपना सर दे गया



मुश्किलें जिंदगानी कि आसाँ हुईं

वक़्त जीने का ऐसा हुनर दे गया



किसने बख्शी है फूलों को खुशबू ''ज़हीन''?

कौन है जो शजर को समर दे गया ?

3 comments:

  1. वाह! क्या बात है! बहुत सुन्दर!

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  2. डर गया है वो क्या मेरी परवाज़ से
    हौसले छीन कर बालो - पर दे गया
    बहुत खूबसूरत शैर है। खयालात की ताज़गी है।

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  3. जब दिखाए उसे उसके चेहरे के दाग

    आईना वो मुझे तोड़कर दे गया

    waah! kya khuub kaha hai.
    bahut badhiya lagi yeh tazaa ghazal.

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