हुई है आज मुयस्सर तेरे हवाले से
वो ज़िन्दगी जो है खुशतर तेरे हवाले से
ये सच है खालिक़े - अकबर तेरे हवाले से
संवर गए हैं मुक़द्दर तेरे हवाले से
मुरादें जो भी हैं मेरी तेरे करम के तुफ़ैल
कुबूल होंगी सरासर तेरे हवाले से
जहाँ को आज भी तारीकियाँ हैं घेरे हुए
तनेगी नूर कि चादर तेरे हवाले से
तेरे हवाले से गुलशन में फूल महके हैं
सदफ़ में पैदा हैं गोहर तेरे हवाले से
तेरे हबीब कि अज़मत का ये सबूत भी है
जो कलमा पढ़ते हैं कंकर तेरे हवाले से
है तेरी ज़ात से उम्मीद और चमकेगा
''ज़हीन'' का भी मुक़द्दर तेरे हवाले से
'ज़हीन'' बीकानेरी
Thursday, April 8, 2010
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