```````ग़ज़ल``````````
कभी दर्द - ए -दिल कि दवा चाहता हूँ
कभी रोग इस से सिवा चाहता हूँ
अरे बेवफा सुन मैं क्या चाहता हूँ
खता मैंने कि हैं सज़ा चाहता हूँ
बहुत पहले जो ज़ख्म तूने दिया था
वही ज़ख्म फिर से हरा चाहता हूँ
मुयस्सर ना आई थी ताबीर जिसकी
वही ख़्वाब फिर देखना चाहता हूँ
अँधेरे ना आयें मेरी ज़िन्दगी में
जो जलता रहे वो दिया चाहता हूँ
ज़माने के ज़ुल्म -ओ -सितम सह गया मैं
तेरे ज़ुल्म कि इंतिहा चाहता हूँ
जिसे देखकर ज़ख्म दिल के हरे हों
उसे इक नज़र देखना चाहता हूँ
''ज़हीन'' आज फिर क्यूँ मैं उसकी कहानी
उसी कि ज़बानी सुना चाहता हूँ
Friday, July 23, 2010
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बहुत बहुत धन्यवाद इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए!
ReplyDeleteshukriya nilesh sahib
ReplyDeleteज़माने के ज़ुल्म -ओ -सितम सह गया मैं
ReplyDeleteतेरे ज़ुल्म कि इंतिहा चाहता हूँ
बहुत ख़ूब!
Liked your blog.
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