फूल; खुशबू ;बहार दे मौला
अब फ़ज़ा ख़ुशगवार दे मौला
अब ज़मीं को संवार दे मौला
ज़र्रा - ज़र्रा निखार दे मौला
जो हैं बे-रोज़गार उनको भी
रिज्क़ दे कारोबार दे मौला
ग़मज़दा हैं जो लोग उनपर भी
थोड़ी खुशियाँ उतार दे मौला
तेरी हर इक अता पे राज़ी हूँ
फूल दे या कि ख़ार दे मौला
राहे-हक़ से भटक न जाऊँ कहीं
नफ़्स पे इख्तियार दे मौला
सर उठा कर जियें ज़माने में
ज़िन्दगी बा-वक़ार दे मौला
ज़ुल्म के जिससे हों ख़ता औसान
ऐसा सब्रो-क़रार दे मौला
जोश पर है जो ज़ुल्म का दरिया
उसका पानी उतार दे मौला
इल्तिजा है ''ज़हीन'' कि तुझसे
शाइरी पे निखार दे मौला
''ज़हीन'' बीकानेरी
Thursday, April 8, 2010
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bahut khoob.............!
ReplyDeleteएहसास के रंग किताब कहाँ मिलेगी ? मैं उसे खरीदना चाहता हूँ ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल है।
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